Tuesday, August 19, 2008

मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ..

मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ..

सुना है आजकल बाज़ार में मूर्तियाँ बहुत बिकती हैं..
पत्थर की सोने की चांदी की कांसे की मूर्तियाँ..
मूर्तियाँ ही मोर्तियाँ..
ये मूर्तियाँ जब घरों में आ जाती हैं..
गहनों , फूलों, मालाओं से लद जाती हैं..
कभी कभी तो ये दूध भी पी जाती हैं..
और दूध में ही नेह्लाई जाती हैं..
इन मूर्तियों को सब याद रखतें हैं..
पर मूर्ती बनाने वालों को सब भूल जाते हैं..
वे छोटे कारीगर भूखे पेट सोते हैं..
उनके बच्चे भूख से मर जाते हैं..
उन्हें याद रखने की जरुरत ही क्या है?
उनकी बनायीं मूर्तियाँ ही सर्वस्व हैं..
ये मूर्तियाँ जो सबके दुःख हारती हैं..
अपने सृष्टा को तो ये भी भूल जाती हैं..
ये भी कृपा दृष्टि अपने खरीददारों पर ही रखती हैं..
सुना है आजकल बाज़ार में मूर्तियाँ बोहोत बिकती हैं..

_ ankita

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