उसके पैराहन की वो मदमाती महक..
हुस्ने-माह सी छाती ही जाती है..
और वो रेशमी दामन की छुअन..
कहकशां सी हर पल को गुदगुदाती है..
सदा है उसकी या चिडियों की चहक..
मिश्री की तरह बस घुलती ही जाती है..
ख्याल उसका है जैसे हसरत-ऐ-दिल..
करार की तरह बस मिलता ही जाता है..
और सादगी है जैसे निगाह-ऐ-नियाज़..
गुंचा-ऐ-दिल बस चटकता ही जाता है..
मत पूछो वो नूरानी चेहरा..
मैहर-ओ-माह सा चमकता ही जाता है..
रंगत-ऐ-हुस्न उसकी कैसे हो बयान..
की नामबार भी होश खोता ही जाता है ..
.....
हुस्न-ऐ-माह- चौदवीं का चाँद
निगाह-ऐ-नियाज़- purpose of eyes full of luv..
मेहरो-माह - सूरज और चाँद..
नामबार - messenger..
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regards,
ankita
Tuesday, August 19, 2008
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2 comments:
The words about "Murtiyan" need no compliments and rest are also impressive!! Even i didn't know that you have so much "said" from your side!!
Great work till now, but it should flourish!!
May God Bless You!!
Regards
hey thanx dr. sahab..
i'll continue..nd will seek ur piece of advices also..
thanx...
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