Tuesday, August 19, 2008

सुना तो बोहोत था,

सुना तो बोहोत था,
पर देखा न था!!
जब देखा तो वो सब देखा,
जो सुना तो था ,
पर देखा न था!!
क्या देखा??
भारत के गाँव,
उनमें मिटटी के छोटे छोटे घर..
गोबर-मिटटी से लिपे आँगन,
दौड़ते हुए नंग-धड़ंग bachhe..
धुल उड़ती है..
लू चलती है..
पर वोह दौड़ते हैं..दौड़ते हैं..
उनकी हड्डियां निकल आई हैं..
आँखें धंसी हुई हैं..
पर वे सब के सब दौड़ते हैं..
दौड़ते हैं जब तक..
कोई बीमारी लपक नहीं लेती..
जिन्दगी की दौड़ में हरा नहीं देती..
सुना तो बहुत था..
फिर आते हैं वे सपनों में..
आते हैं, दौड़ते हैं, कूदते हैं..
अपनी माँओं के सपनों में..
खिलखिलाते हैं, ठहाके लगते हैं..
हंसते हैं, मुस्कुराते हैं..
सपनों में दौड़ लगते हैं..
इस बार वो नहीं हारते..
पहली बार वे जीत जाते हैं..
सोती हुई माँओं की आँखों में ..
वे उम्मीद भर जाते हैं..
सुना तो बहुत था..

regards,
ankita

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