वो मेरे वजूद का एक भरा पूरा हिस्सा थी..
हर ख़ुशी, हर गम उसके साथ बिताया था..
उसकी हर छोटी सी बात मेरे लिए किस्सा थी..
उसकी हर मुस्कान को आँखों में बसाया था..
अभी अप्रैल माह को गुजरे दिन ही कितने हुए..
हर चीज को अपन एही हाथों से सजाया था..
पापा ने मेंहदी का पौधा सालों पहले बीजा था..
उसी मेंहदी को चुन कर आँगन में सुखाया था..
उसकी ख्वाहिश थी मेंहदी मैं ही लागों..
उसकी चाँद सी हथेली पे एक और उगाया था..
और जाते जाते आँखों में पानी भरकर..
मैंने अपने दिल को दिल से लगाया था..
अगले ही दिन तो आना था उसे..
फिर भी उसके जाने का एहसास गहराया था..
जब वोह आई उसका चेहरा पढना चाह था..
कुछ तो था उन आँखों में जो नजर न आया था..
या फिर नज़र तो आ गया था मुझे..
पर उसके लबों की मुस्कान ने उसे झुठलाया था..
फिर उस शाम को वो चली गयी..
और जाने क्यूँ उस पल पापा ने मेरे बालों को सहलाया था..
फिर मेरे कान हर रोज़ उसको सुनना चाहते..
पर न उसको कोई ख़त न फ़ोन ही आया था..
एक दिन भैया खुद ही चले गए थे वहां..
और उसने हमेशा की तरह सब छुपाया था..
'ख़ुशी' नाम जो दे दिया था हमने उसे..
तो खुश दिखना उसे हमेशा से बखूबी आया था..
कल उसका जन्मदिन है यही सोचकर..
मैंने उसके पास फ़ोन मिलाया था..
उसकी आवाज़ की खलिश मैंने सुन ली थी..
उसने तो कई बार समझाया था..
सुबह से बेचैन सी थी दिल में..
बिना बताये मैंने वहां का टिकेट कराया था..
और शाम होते होते मैं पहुँच गयी थी..
सहमते- सहमते दरवाज़ा खटखटाया था..
दरवाज़ा खुला और मैं पत्थर सी जम गयी..
उन्होंने मेरी छोटी की तस्वीर पे दिया जलाया था..
अरे आज तो मेरी छोटी का जन्मदिन है..
फिर मोमबत्तियों के जगह क्यूँ ये सब chaya था..
और मैं कातिलों के बीच खड़ी थी..
पर एक ही सवाल दिल में चकराया था..
कितनी खुश रहती थी 'ख़ुशी' हमेशा..
उसने हमेशा एक ही सपना सजाया था..
छोटी हमेशा कहती थी मैं कहीं न जाउंगी..
उसने शायद 'ख़ुशी'' के लिए जीवन गंवाया था..
मेरी छोटी तो सबसे अलग थी एकदम..
हमेशा से ही जीत का लोहा मनवाया था..
हम ही थे कसूरवार उसके शायद..
ये सात जन्मों का रिश्ता हमने ही रचाया था..
कातिल ये हैं जो ढोंग आकर रहे हैं..
या की हम जिन्होंने उसका घर बसाया था..
पापा की कितनी ऍफ़ डी टूटी..
और उसकी मौत का सामान सजाया था..
बचपन के सबक बचपन में ही रह गए..
दहेज़ प्रथा पर निबंध ने kitni बार इनाम दिलाया था..
छोटी तो नौकरी करना चाहती थी..
पर 'ख़ुशी' ने अपना फ़र्ज़ निभाया था..
काश हम छोटी को छूती ही रहने देते..
ख़ुशी को डोली में बिठा छोटी को पहली बार हराया था..
छोटी की मासूमियत ने मुझे बहुत कुछ दिया..
और मैंने जिन्दगी का एक मकसद बनाया था..
और किसी 'छोटी' को ''ख़ुशी'' से न हारने दूंगी..
'रोशने- ख्याल' ने ये डायरी में लिखवाया था..
warm regards,
अंकिता..