Thursday, September 11, 2008

Tumko main kya naam dun..

Kya duaa kya salaam dun..

Tum khud mukammal duaa ho,

Sajde mein lafz tamaam dun.

Tum falak pe chaand jaise,

Aur tumhe kya mukaam dun.

Tum sabaab-ae- sukoon dil ke,

Isse jyada kya kaam dun.

Karaar ki tarah milte raho,

sehar dun fir shaam dun.

Pyaase ho zamaane se tum,

Gazalon-nazmon ke jaam dun.

Jab ibteda tumse hai meri,

Kyun ise main anzaam dun.

Tum mujhe tohfe se mile ho,

Har shai khaaso-aam dun.

Jehan-o-jaan tumse roshan,

Roshan-ae-khyaal tumhe kalaam dun.

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ankita

Monday, September 8, 2008

''लड़की''

किसी ने कह दिया हंसके, बला है..
हर दौर ने उसको बस छला है..

जफा, जिल्लत, जग हंसाई तोहफे में मिली..
उसकी खामोशियों का बस यही सिला है..

हर कदम पे नसीब सितम और लाचारी..
फिर भी कब किसी से उसको गिला है..

ख्वाब तो वो भी सजाती है वस्ल के..
हर ख्वाब पे रिवाजों का खंज़र चला है..

दुआ देना मन्नते मांगना उसकी फितरत है..
और हर दुआ में चाहती सबका भला है..

रस्मों पे कुर्बान, कसमों पे फ़ना..
हर अरमान इसी आतिश में जला है..

आहटों, मुस्कुराहटों पे सैकडों पहरे..
मानो लड़की नहीं कोई पुराना किला है..

रेजा- रेजा रोज़ मरती हैं उम्मीदें..
फरियादों से कब कोई पत्थर हिला है..

हर रोज़ मिन्नतें कर उगाती वही सूरज..
जो हर शाम शर्मसार सा ढला है..

शायरों के लिए रूह-ऐ-सुखन है वो,
उसी के नाजो-अदा से चर्चा मिला है..

बज्मे-जहाँ में उसके हादसों का हुजूम..
बदकिस्मती ये कि टालने से कब टला है..

उसके हुस्न और जलवों पे तो सब मिटे हैं..
फुगाँ पे कब कोई संगदिल मचला है..

हर बशर कि शख्सियत उससे है..
उसी के आँचल में हर बचपन पला है..

अलामत है ये इब्तिदा कि कैफियत न कर..
सुखन पे 'रोशन-ऐ ख्याल मुकम्मिल होंसला है..

warm regards..
ankita..

Tuesday, September 2, 2008

गर खुदा है..

गर फलक पार वो खुदा है..

फिर क्यूँ हर बशर गमजदा है..

हर सूं मुफलिसी और नाकामी..

क्यूँ बेअसर मजलूम की सदा है..

हर शहर लूट और गैर-बराबरी..

मेरा चर्चा कब तुझसे जुदा है..

सफीना-ऐ-जिन्दगी बीच तलातुम..

और साहिल पे पशेमां सा नाखुदा है.

ता-उम्र अश्को-गम बेहिसाब मिले..

सहरा-ऐ-सफ़र किस्मत में बदा है..

मौत मुझसे हारे या की मैं उससे..

हो तमाशा बयाँ क्यूँकर ये मुद्दा है..

आतिश-ऐ-दोजख में ख़ाक जिन्दगी..

'रोशन-ऐ-ख्याल' के सुखन में फिरभी अदा है..

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ankita...

Monday, September 1, 2008

इन्ही पगडंडियों पे चलते चलते.
.अठखेलियाँ करते करते..
एक दिन वोह मिले थे..
पहले निगाहें मिली..
फिर मन भी मिले थे..
वो श्यामल रंग का..
जिंदादिल नौजवान था..
और वो रंगीन तितली सी..
सादगी उसकी पहचान थी..
दोनों दुनिया की ,
सबसे हसीं शै में खोये थे..
बहुत हंसते थे वे..
कई बार हंसते हंसते रोये थे..
उनकी हर बात निराली थी..
एक अलग सी दुनिया बसा ली थी..
कभी ख़त लिखते थे..
कभी ग़ज़ल कहते थे..
कई बार चंद के चेहरे को..
आयत की तरह पढ़ते थे..
दरअसल वे मोहब्बत में पड़े न थे..
मोहब्बत ने उन्हें कैद कर लिया था..
जब उनको अपने मासूम ख्वाबों की,
इबारत रखनी थी..
उसी पल उसी लम्हे से,
दुनिया ने उन्हें अपने निशाने पे रख लिया था..
अब वो इश्क के मारे न थे..
गर मुआफ मुजरिम थे..
उन्होंने संगीन जुर्म किया था..
इंसानी ज़ज्बे को चाह था..
चाहत से पहले वे ,कुछ भूल गए थे..
खुद को भुलाने से पहले,
अपना दायरा अपनी नींव भूल गए थे..
उन्होंने एक दूजे को,टूट के चाहा था..
पर वो दौर-ऐ-समाज के,
कुछ उसूल, रसूख भूल गए थे..
कैसे उन्होंने हिमाकत की..
देवत्व प्राप्त जाति की लड़की...
और दिल हारी भी तो किस पर..
एक अदना सा भिश्तियों का छोकरा..
कैसे अपने शिवाले को होने दे मैला..
नहीं कुछ तो करना होगा..
मन की वो पढ़ा लिखा है.
पर खानदान तो निपट गिरा है..
फिर पंचायत हुयी, बैठकें बुलाई गयी..
और फिर मोहब्बत की सजा सुनाई गयी..
या के इनको अलग कर दो..
और जो न माने तो,
सर को धड से अलग कर दो..
सुन कर दोनों की रूह काँप गयी..
अरे वो तो अभी अभी ,
नींद की खुमारी से जागे थे..
वे इंसान तो थे ही नहीं..
बस अभागे थे..
जात धर्म की परिभाषा तो उन्हें,
कभी भी समझ न आती थी..
एक दूजे को जान कर..
एक पुख्ता समझ बनायीं थी..
पर आज तो जैसे सारी दुनिया..
उन्हें गुनाहगार बनाये थे..
कैसे वे खुद को भूल सकते थे..
जब उनके दिल एक साथ धड़कते थे..
साथ जीने मरने की कसमे खायी थी..
साँसों पे तो अपनों ही पहरा लगा दिया..
पर साथ मर तो सकते हैं..
यही सोच कर उन्होंने..
उसी कुए ,
में अपना आखिरी घर बसा लिया..
ये कुआ उनके अनगिनत पलों का,
खामोश गवाह था..
इस आज़ाद मुल्क के,
दो आज़ाद ख्याल जवानियों का..
एक साथ जीना गुनाह था..
और कुछ दिन बाद फिर सब..
पहले सा रवां था..
हाँ लेकी दो बबूल के पौधे ..
कुए की मुंडेर पे उग आये थे..
कुआ अपने होने से परेशान था..
बबूल के काँटों की ..
अनछुई घुटन का..
एक वो ही तो निगहबान था..
*****
अंकिता..